लड़ाई कहां से शुरू की जाए
- Umesh Dobhal
- Sep 24, 2022
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Updated: Sep 25, 2022
बहुत पहले।
हमारे जन्म के बाद
पिता की न सह सकने वाली ज्यादतियों के बावजूद
तुमने सोचा होगा
मेरे बेटे जवान होकर,
हर दुख हर लेंग मेरा
हमारे उठान पर
तुमने अपना संबल देखा होगा।
और भूल गयी होगी हर गमगीन किस्सा,
किसी भीड़ में गुम हो गये स्वप्न
जो हमने देखे थे
जंदरो चलाते हुए
तुम्हारे हिलते घुटने पर सिर रखे हुए
समाचार है कि,
सड़क आ गयी है गांव में,
और बिजली भी
पर तुम इस बीच और झुक गयी हो
चोट खाये लोहे की तरह
सुबह से देर रात तक
वह तुम ही हो
जो खपती रहती हो काम में
मूंज की रस्सी की तरह
तुम्हारी देह पर परिवार भर की
जरूरतें लिपटी हुई हैं
इसलिये तुम चीथड़ों से ही चला लेती हो काम
खेत खलिहान आंगन और चौके में
सच कहा जाय तो हर उस जगह
जहां तक रोक नहीं लगी है तुम पर
तुम लड़ रही हो
फौज में खेत रहे
और एक अन्य भाई की याद को आंखों में संजोये हुए
ससुराल में रह रही बाल बच्चेदार
अपनी बड़ी बेटी 'भागा की मां' के नाम से तो
तुम हर समय पुकारी ही जाती हो
३३ वां वर्ष है हमें
और कवितायें लिखते हुए हम सोच रहे है कि
लड़ाई कहाँ से शुरू की जाय
– उमेश डोभाल
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