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आसमान

  • Writer: Umesh Dobhal
    Umesh Dobhal
  • Sep 27, 2022
  • 1 min read

अनचाहे सम्बन्धों की

अखर गई यह बरखा

बिन बुलाये क्यों कर

आई यह मूसलाधार वर्षा


सिमट गई फाल्गुन की

मदमाती गांव की धरती

पूस गांव की कंपकंपी को

फिर बुला लाई यह बरखा


अधूरे जोते खेतों से

हल आ गया वापस घर में

दादी की फिर जल गई धूनी

जिसे घेर कर बैठे हैं नाती-पोते

हाथ गरमाते सुन रहे हैं वो

दादी के मुंह से खट्टे-मीठे किस्से


आसमान की मां ने कहा था

कुछ और बन लो

पर आसमान न बनना भूल से बेटा

बेमौसम बरसोगे-गाली खाओगे


हठी था बेटा

मां की एक न सुनी

और आसमान बन गया अपनी हठ में

इसलिये जब तब गाली खाता है

फिर भी अपनी ही मर्जी करता है


यह कह कर खरी खोटी सुनाई आसमान को दादी ने।

– उमेश डोभाल

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