हर जगह मौजूद है मां
- Umesh Dobhal
- Sep 27, 2022
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असमय बूढ़ी हो गई है मां
की उम्र के बांज की शाखाओं से खुरदरे हाथ
कितने स्नेहिल हैं बेटी-बेटों व नाती-पोतों के लिए
उनके लिए
कितना जवान है मां का मन
खिले बुरांश के झरते पराग की तरह
गाय को पुचकारती/बतियाती
दूब सी फैली और आकाश सी तनी
हर जगह उपस्थित है मां
बालपन को कैसे
कहां छुपाये/संजोये है
अपनों पर किसी
खतरे की छुअन भर की आंशका से
कुल्हाड़ी की चोट पड़ रहे पेड़ सी
कैसी कांपती है परिवार की कीली पर पृथ्वी सी घूमती है मां।
– उमेश डोभाल
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