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वहां तुम हो

  • Writer: Umesh Dobhal
    Umesh Dobhal
  • Sep 25, 2022
  • 1 min read

आंगन चिड़ियों का भी है

और बुरकती नवजात दुर्गी बछिया का भी

आंगन के चप्पे-चप्पे पर चस्पां हैं

यादों के हुजूम

आंगन में फैलाये गये अनाज के बीच

छुप गई है पंच पथरी' लट्टी आदि खेलों वाली चिफली पठालियां

जिन्हें अपनी जवानी में

खेत और जंगलों में पीठ पर लाद कर लाये थे पिता


ये बैसाख के दिन हैं

आडू खुमानी पर फल और नारंगी पर फूल लदे हैं

हवा में झूम रहे हैं पेड़

खिड़की और आंगन को फलांग कर

लहलहाते गेहूं के खेतों में चला गया है मन


वहां तुम हो

मेरी यादों में

आंगन में खिले गुलाब की तरह मुस्कराती हुई।


– उमेश डोभाल

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