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Umesh Dobhal

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पहाड़ी औरत
उसका बचपन मां के संग खेतों में बीता अपनी उम्र और शरीर से ज्यादा काम करते हुए उसके खेल डंगर, दरान्ती, मिट्टी और घास के गट्ठर थे इन्हीं के...

Umesh Dobhal
Sep 26, 20222 min read
ठिठुरते हुए भी
जिनका कोई नहीं है न ठौर और ना ही ठिकाना उनका भगवान है ठंड से ठिठुरते इस शहर में यही पढ़ाया गया है हमें पीढ़ियों से रटे इस ज्ञान को आने...

Umesh Dobhal
Sep 25, 20221 min read
कौन कहां रह गया
शहर में सांझ तक निरूद्देश्य भटकता रहा सांस टूटने की चटख तीर सी बिंध गई लो आज का दिन भी दूर से अलविदा कह गया क्या पता जीवन की दौड़ में कौन...

Umesh Dobhal
Sep 25, 20221 min read
पेड़, हरियाली और सड़क
गाड़ी सड़क पर.दौड़ रही है यहां एक जंगल था हरा-भरा और दृष्टिपथ तक फैलता हुआ और एक नदी थी तस्वीरें उभर रही हैं कई पहाड़ियों को पीछे छोड़कर...

Umesh Dobhal
Sep 25, 20221 min read
अमृत बरसा
पहाड़ियों को चूमकर सूरज आंगन तक क्या आया खेतों में पानी से भरी थालियां चांदी सी चमकने लगी बर्फ से ढकी चोटियां शरमाई और दुल्हन के मुख सी...

Umesh Dobhal
Sep 25, 20221 min read
रात भर
सांय-सांय करते भग्न अवशेष किसी के साकार हुए स्वप्नों की परिणति निज उर में नितान्त निजी शोभा समेटे है इन्हें सिर्फ तुम्ही दुलारना छूटती है...

Umesh Dobhal
Sep 25, 20221 min read
धूप भी तो छांव भी है जिन्दगी
जिधर उड़ाया उड़ गये धूप भी तो छांव भी है जिन्दगी गांव में क्या रुकी एम्बेसडर नई शीशों को छूते बच्चे हो गई जिन्दगी मल्यो' की डार से स्वप्न...

Umesh Dobhal
Sep 25, 20221 min read
वहां तुम हो
आंगन चिड़ियों का भी है और बुरकती नवजात दुर्गी बछिया का भी आंगन के चप्पे-चप्पे पर चस्पां हैं यादों के हुजूम आंगन में फैलाये गये अनाज के...

Umesh Dobhal
Sep 25, 20221 min read
आदमी होकर जीने की तकलीफ
तकलीफ सच ! तकलीफ यही है आदमी होकर जीने की तकलीफ पूंजी के गर्भ से जन्मी अव्यवस्थित होड़ में शरीक होने की मजबूरी मजबूरी समृद्ध होकर आदमी...

Umesh Dobhal
Sep 25, 20221 min read
कितनी तृष्णा थी
सावन में बरसते बादल एकाकार हैं सब न रूप में न रंग में धुंधलके का अहसास धरती और आकाश के मिलन का प्रकम्पन प्रकाशित है वातावरण ओह, कितनी...

Umesh Dobhal
Sep 25, 20221 min read
बर्फ और संकेत
एक शोर के साथ बच्चे खेल रहे हैं बच्चों का शोर ऐसा पाठ नहीं है कि सूंघा जाय बावजूद इसके कि सी0 आई0 डी0 सूंघ रहे हैं सूंघने को बहुत कुछ है...

Umesh Dobhal
Sep 25, 20221 min read
एक अच्छी कविता
एक अच्छी कविता जिसमें समूची जिन्दगी हो नदी सी खिलखिलाती निरन्तर आगे बढ़ती हुई समुद्र सी पूर्णता हो कविता संघर्षरत जिन्दगी है रोटी के लिए...

Umesh Dobhal
Sep 25, 20221 min read
बसन्त आ गया
बसन्त आ गया आंगन में गीत गाने को हुआ मन पहाड़ों में बसंत आने लगा खेतों में मिट्टी की फैल गई सौंधी सुगन्ध मन प्राण में रच बस गई फ्यूली और...

Umesh Dobhal
Sep 25, 20221 min read
व्यष्टि-समष्टि
श्रद्धा अर्थात् विश्वास वीर्य अर्थात् मन का तेज स्मृति समाधि अर्थात् एकाग्रता प्रज्ञा अर्थात् सत्य वस्तु का विवेक समष्टि में व्यष्टि तो...

Umesh Dobhal
Sep 25, 20221 min read
ग्यारहवीं बटालियन
पंजाब हो या मिजोरम दंगे हों या हुई हो कहीं सरहद पर झड़प हर मोर्चे पर सबसे आगे है ग्यारहवीं बटालियन दुश्मन भीतर का हो या बाहर का हर जगह...

Umesh Dobhal
Sep 25, 20221 min read
हथियार उठाने ही होंगे
छोये भी नहीं फूटे मौसम भी खिलाफ कर दिया गया है गांवो में यक-ब-यक बढ़ गई है उम्र पेड़ों की तरह गायब होने के लिए कितने गुमसुम हो गये हैं...

Umesh Dobhal
Sep 25, 20221 min read
युद्व में हूं
बहते हुए झरने, गाड-गधेरे पहाड़ों की चोटियां बुग्याल और उनका फैलाव अच्छे लगते हैं गीत गाते ग्वाले को हलवाहों को बैलों की चुनींदा भाषा में...

Umesh Dobhal
Sep 25, 20221 min read
जागो बसंत दस्तक दे रहा है
सरपट भागते घोड़े की तरह नहीं अलकनंदा के बहाव की तरह धीरे धीरे आयेगा बसंत बसंत की पूर्व सूचना दे रहे हैं मिट्टी पानी और हवा से ताकत लेकर...

Umesh Dobhal
Sep 24, 20221 min read
अब मैं मार दिया जाऊंगा
अब जबकि समाप्त हो रहा हूं मैं मेरा जिस्म मैं, इस वक्त भी उन्हीं के साथ हूं यह पहाड़ी की ऊँची बुलंदियां और नीचे फैली घाटियों का विस्तार...

Umesh Dobhal
Sep 24, 20221 min read
लड़ाई कहां से शुरू की जाए
बहुत पहले। हमारे जन्म के बाद पिता की न सह सकने वाली ज्यादतियों के बावजूद तुमने सोचा होगा मेरे बेटे जवान होकर, हर दुख हर लेंग मेरा हमारे...

Umesh Dobhal
Sep 24, 20221 min read
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